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कोई खंडित, कोई कुंठित,

कृष बाहु, पसलियां रेखांकित,

टहनी से टांगे, बढ़ा पेट,

टेढ़े मेढ़े, विकलांग घृणित!

विज्ञान चिकित्सा से वंचित,

ये नहीं धात्रियों से रक्षित,

ज्यों स्वास्थ्य सेज हो, ये सुख से,

लौटते धूल में चिर परिचित!

पशुओं सी भीत मुक्त चितवन,

प्राकृतिक स्फूर्ति से प्रेरित मन,

तृण तरुओं से उग-बढ़, झर-गिर,

ये ढोते जीवन क्रम के क्षण!

कुल मान ना करना इन्हें वहन,

चेतना ज्ञान से नहीं गहन,

जगजीवन धारा में बहते ये मूर्ख पंगु बालू के कण!

Q:

“तृण तरुओं से उग-बढ़” इस पंक्ति का अर्थ है?

  • 1
    घास फूस की तरह हल्के हैं इसलिए तिनकों की तरह उड़ रहे हैं।
  • 2
    पौधों तथा घास की तरह बिना कुछ खाए पिए बढ़ रहे हैं ।
  • 3
    घास तथा पौधों की तरह पैदा हो रहे हैं तथा मर रहे हैं।
  • 4
    प्राकृतिक वातावरण में घास व पौधों की तरह फल फूल रहे हैं।
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Answer : 3. "घास तथा पौधों की तरह पैदा हो रहे हैं तथा मर रहे हैं।"

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