राजस्थान लोक संत
राजस्थान के महिला लोक सन्त
1.करमेती बाई – यह खण्डेला के राज पुरोहित पशुराम काथडिया की बेटी थी। विवाह के पश्चात् विदा होने से पूर्व रात्रि में कृष्ण भक्ति में लीन होने के कारण वृन्दावन चली गई। घुड़सवारों से बचने के लिए मृतक ऊँट के पेट के खोल में जा छिपी। वृन्दावन के ब्रह्मकुण्ड में आजीवन कृष्ण की भक्ति करती है। खण्डेला के ठाकुर ने इनकी स्मृति में ठाकुर बिहारी मन्दिर का निर्माण करवाया।
2.सहजो बाई – संत चरणदास की शिष्या सहजो बाई ने सहज प्रकाश सोलह तिथी शब्दवाणी आदि की रचना की। यह शिक्षित थी।
3.करमा बाई – अलवर के गढीसामोर की विधवा ने आजीवन कृष्ण भक्ति में सिद्धा अवस्था प्राप्त की।
4.फूली बाई – जोधपुर के मानजवास गाँव की आजीवन विवाह नहीं किया। जोधपुर महाराज जसवन्त सिंह की समकालीन थी। स्त्री शिक्षा व उदार में विशेष योगदान दिया।
5.समान बाई – अलवर के माहुन्द गाँव की निवासी थी। भक्त रामनाथ की पुत्री थी। इन्होंने आजीवन अपनी आँखों पर पट्टी बांधकर रखी तथा अन्य किसी को देखना नही चाहती थी। इन्होंने राधा-कृष्ण के मुक्तक पद्यों की रचना की।
6.भोली गुर्जरी – करौली जिले के बुग्डार गाँव की निवासी, कृष्ण के मदन मोहन स्वरूप की उपासक थी। दूध बेचकर जीवनयापन करती थी। कृष्ण भक्ति से चमत्कार करती थी।
7.दया बाई – यह कोटकासिम के डेहरा गाँव की निवासी थी। संत चरणदास के चाचा केशव की पुत्री थी। यह माँ से कथा सुनने के बाद कृष्ण भक्ति में लीन होती गई। और विवाह ना करके संत चरणदास की शरण में चली गई। इन्होंने ‘‘दयाबोध’’ नामक ग्रन्थ की रचना की। इनकी मृत्यु बिठुर में हुई थी।
8.कर्मठी बाई – बांगड क्षेत्र के पुरोहितपुर के काथरिया पुरूषोत्तम की पुत्री थी। यह गोस्वामी हित हरिवंश की शिष्या तथा अकबर की समकालीन थी। इन्होंने अपना अधिकांश समय वृन्दावन में बिताया।
9.ताज बेगम – फतेहपुर में कायमखानी नवाब कदम खाँ की शहजादी कृष्ण उपासिका थी।
10.महात्मा भूरी बाई – सरदारगढ़ (उदयपुर) की निवासी थी। इनका 13 वर्ष की अल्पायु में नाथद्वारा के धनी व 23 वर्ष फतेहलाल से विवाह हुआ था, रोगी पति की सेवा करते-करते बैरागी होती चली गई। देवगढ़ की मुस्लिम नूरा बाई से मिलने पर इन्होंने वैराग्य ले लिया। इनका कपासन के सूफी सन्त दीवान शाह से काफी सम्पर्क रहा।
11.ज्ञानमती बाई – यह चरणदास की शिष्य आत्माराम इकंगी की शिष्या थी। इनका कार्यक्षेत्र जयपुर का गणगौरी मोहल्ला था।
12.जनखुशाती – यह चरणदास जी के शिष्य अरखेराम की शिष्या थी। इन्होंने साधु महिमा तथा बधुविलास नामक ग्रन्थों की रचना की थी।
13.गंगाबाई – गोस्वामी विट्ठलदास की शिष्या थी। कृष्ण वात्सल्य भाव को भक्ति में प्रधानता दी। गोस्वामी हरिराय के पश्चात् गंगा बेटी का नाम कृष्ण भक्ति में प्रसिद्ध है।
14.राणा बाई – हरनावा गाँव के जालिम जाट की पुत्री थीं पालडी के संत चर्तुदास की शिष्या थी। इन्होंने जीवित समाधि ली थी। इनके ………………………………………………… भिक्षा में रखने का नियम बनाया था।
15.गवरी बाई – इनका जन्म नागर ब्राह्मण परिवार मंे डूंगरपुर में हुआ था। इनका 5-6 वर्ष की आयु में विवाह हो गया था। इन्होंने इनके लिए बालमुकुन्द मन्दिर का निर्माण करवाया। इनको मीरा का अवतार माना जाता था। जन्म 1815। राजस्थान की दूसरी मीरा।
16.मीराबाई – इनका जन्म मेड़ता ठिकाने के कुडकी गाँव में हुआ था। इनका जन्म का नाम प्रेमल था। इनके पिता राठौड़ वंश के रत्नसिंह और माता वीरकुंवरी थी। इनकी माता की मृत्यु के पश्चात् दादा रावदुदा मेड़ता लेकर चले गये। इनको प. गजाधर ने शिक्षित किया था। इनका विवाह राणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र भोजराज से हुआ था। ये कर्मावती हाड़ी के पुत्र थे। देवर विक्रमादित्य द्वारा पति व श्वसुर की मृत्यु के बाद अनेक कष्ट दिये। मीरा पुष्कर होते हुए वृन्दावन की गई जहाँ उन्होंने रूप गोस्वामी के सानिध्य में कृष्ण भक्ति की। किवदन्ती के अनुसार 1540 में द्वारका स्थित रद्दोड़ की मूर्ति में लीन हो गई। इनके द्वारा प्रमुख ग्रन्थ – गीत गोविन्द टीका, नरसी जी का मायरा, रूकमणी हरण, मीरा की गरीबी, राग गोविन्द आदि है। मीरा के स्फुट पद वर्तमान में मीरा पदावली के नाम से जाने जाते हैं। मीरा के दादा ने मेड़ता में मीरा के लिए चारभुजा नाथ जी का मन्दिर बनवाया था। इनके श्वसुर ने कुभशाह मन्दिर के पास कुंवरपदे महल बनवाया था।
17.रानी रूपा देवी – राजमहलों से बनी महिला सन्त यह बालबदरा की पुत्री थी तथा धार्मिक संस्कारों में पली थी। यह मालानी के राव भाटी की शिष्या थी तथा निर्गुण सन्त परम्परा में प्रमुख थी। इन्होंने अलख को अपना पति माना था तथा ईश्वर के निराकार रूप की स्तुति की। इन्होंने बाल सखा धारू मेघवाल के साथ समाज के अछूत वर्ग मेघवाल में भक्ति की व जागृति फैलाई। यह मीरा दादू व कबीर की प्ररवीति थी। यह तोरल जेसल देवी के रूप में पूजी जाती है।
18.रानी रत्नावती – आमेर नरेश राजा मानसिंह के अनुज भानगढ़ नरेश राजा माधोसिंह की पत्नी थी। यह कृष्ण पे्रम उपासिका थी। इनका पुत्र पे्रमसिंह (छत्रसिंह) नृसिंह अवतार के रूप मंे शिव का उपासक था।
19.रानी अनूप कंवरी – किशनगढ़ नरेश कल्याण सिंह की बुआ, सलेमाबाद के ब्रज शरणाचार्य निम्बार्क सम्प्रदाय के पीठाधिकारी की समकालीन थी। आजीवन वृन्दावन में रही। इन्होंने ब्रज व राजस्थानी भाषाओं में कृष्ण श्रृंगार व लीला पर अनेक पदों की रचना की। यह कृष्ण के बंशीधर व नटनागर की उपासक थी।
प्रताह सिंह की रानी फतेह कुंवरी भी वृन्दावन भी रही।