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मनुष्य का जीवन बहुत सघर्षमय होता है| उसे पग-पग पर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है | फिर भी ईश्वर के द्वारा जो मनुष्य रूपी वरदान की निर्मिति इस पृथ्वी पर हुई है मानो धरती का रूप ही बदल गया है। यह संसार कर्म करने वाले मनुष्यों के आधार पर ही टिका हुआ है। देवता भी उनसे ईर्ष्या करते हैं। मनुष्य अपने कर्म बल के कारण श्रेष्ठ है। धन्य है, मनुष्य का जीवन। 

Q:
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।

  • 1
    कर्मशील मनुष्य
  • 2
    कर्मशील देवता
  • 3
    कर्मशील राक्षस
  • 4
    कर्मशील यक्ष
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Answer : 1. "कर्मशील मनुष्य"

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