Join Examsbook
739 0

निदा की ऐसी ही महिमा है। दो-चार निंदको को एक जगह बैठकर निंदा में निमग्न देखिए और तुलना कीजिए,

दो चार ईश्वर भक्तों से जो रामधुन गा रहे हैं। निंदको की-सी एकाग्रता, परस्पर आत्मीयता, निमग्नता भक्तों में

दुरलभ है। इसलिए संतों ने निंदको को आंगन कुटी छवाय पास रखने की सलाह दी है कुछ 'मिशनरी' निंदक मैने

देखे हैं। उनका किसी से बैर नहीं,हीं धूप नहीं।हीं वे किसी का बुरा नहीं सोचते पर चीबीस पंटे वे निंदा-कर्म में वात

पवित्र भाव से लगे रहते हैं कि ये प्रसंग आने पर अपने बाप की पगड़ी भी उसी आनंद से उछालते हैं, जिस आनंद

से अन्य लोग दुश्मन की। निंदा इनके लिए टॉनिक होती है। इयां-ट्वेष से प्रेरित निंदा भी होती है। वह ईया-वेष से

चौबीसों घंटे जलता है और निदा का जल छिड़ककर कुछ शांति अनुभव करता है। ऐसा निदक बड़ा दयनीय

होता है। अपनी अक्षमता से पीड़ित वह बेचारा दूसरे की सक्षमता के चाँद को देखकर सारी रात श्वान जैसा

भौकता है। ईष्य्या-दूवेष से प्रेरित निंदा करने वाले को कोई दंड देने की जरूरत नहीं है। वह निंदक बेचारा स्वयं

दंडित होता है। जाप चैन से सोझा और वह जलन के कारण सो नहीं पाता । उसे और क्या दंड चाहिए निरंतर

अच्छे काम करते जाने से उसका दंड भी सख्त होता जाता है; जैसे-एक कवि ने एक अच्छी कविता लिखी,

ईष्यंग्रस्त निदक की कष्ट होगा अब अगर एक और अच्छी कविता लिख दी, तो उसका कष्ट दुगुना हो जाएगा।

Q:

कवि की अच्छी कविता पर ईर्ष्याग्रस्त निंदक कैसा अनुभव करता है

  • 1
    कष्ट का
  • 2
    सुख का
  • 3
    खुशी का
  • 4
    प्रसन्नता का
  • Show AnswerHide Answer
  • Workspace

Answer : 3. "खुशी का"

Are you sure

  Report Error

Please Enter Message
Error Reported Successfully