राजस्थान की देवियाँ

Rajesh Bhatia5 years ago 33.7K Views Join Examsbookapp store google play
goddesses of rajasthan

राजस्थान की लोकदेवियाँ

1. करणीमाता
मंदिर – देशनोक बीकानेर – बीकानेर राठौड़ शासकों की कुलदेवी, चारणीदेवी व चूहों की देवी के रूप में प्रसिद्ध, सफेद चूहे काला कहलाते हैं। जन्म का नाम रितू बाई विवाह – देवा के साथ, जन्म का स्थान सुआप (बीकानेर) बीकानेर राज्य की स्थापना इनके संकेत पर राव बीका द्वारा की गई। वर्तमान मंदिर का निर्माण महाराजा सूरज सिंह द्वारा।

2. जीणमाता
मंदिर व जन्म – रैवासी (सीकर) शेखावाटी क्षेत्र की प्रमुख देवी, चैहान राजपूतों की कुल देवी, ढाई प्याला मदीरा पान की प्रथार चैत्र व अश्विन माह में मेला, भाई – हर्ष, मंदिर का निर्माण पृथ्वीराज चैहान प्रथम के काल में।
Goddesses of Rajasthan | राजस्थान के प्रमुख महल | Goddesses of Rajasthan |rasjathan gk for ras in hindi | rajasthan general knowledge in hindi | The major palaces of Rajasthan | forts related gk of rajasthan in hindi | lok devta of rajasthan

3. कैला देवी:
त्रिकूट पर्वत पर, काली सिंध नदी के तट पर मंदिर, यदुवंशी राजवंश (करौली) की कुल देवी, मंदिर निर्माण गोपाल सिंह द्वारा। नरकासुर राक्षस का वध, चैत्र मास में शुक्ल अष्टमी को लख्ख्ी मेला, लागुरईथ गीत प्रसिद्ध।

4. शिला देवी:
मन्दिर आमेर में, अष्टभूजी महिषासुर मदरनी की मूर्ति, पूर्वी बंगाल विजय के उपरान्त आमेर शासक मानसिंह प्रथम द्वारा जससौर से लाकर स्थापित की गई। वर्तमान मंदिर का निर्माण मिर्जा राजा जयसिंह द्वारा कछवाहा वंश की कुल देवी, इच्छानुसार मदिरा व जल का चरणामृत चढ़ाया जाता है।

5. लट्टीयाल माता: फलौदी (जोधपुर में)

6. त्रिकूट सुन्दरी मंदिर: तिलवाड़ा (बांसवाड़ा) में मन्दिर, उपनाम तरताई माता, निर्माण – सम्राट कनिष्क के काल में पांचालों की कुल देवी, आठों में अठारह प्रकार के अस्त्र-शस्त्र।

7. दधीमती माता: मंदिर गोठ मांगलोद (नागौर) में, पुराणों के अनुसार इन्होंने विकटासुर राक्षस का वध किया था। उदयपुर महाराणा को इन्हीं के आर्शीवादों से पुत्र प्राप्ति हुई थी। यह दाधीच ब्राह्मणों की कुल देवी है।

8. चारण देवी (आवण माता): मंदिर तेमडेराय (जैसलमेर) में जैसलमेर के मामड़राज जी के यहाँ हिंगलाज माता की वंशावतार 7 कन्या हुई थी जिन्होंने संयुक्त रूप से चारण देवियाँ कहा जाता है। इनकी संयुक्त प्रतिमा डाला तथा स्तुति चर्जा कहलाती है। चर्जा दो प्रकार की होती है।
सिंगाऊ – शांति के समय की जाने वाली स्तुति।
घडाऊ – विपति के समय की जाने वाली स्तुति।

9. सुगाली माता: आऊवा (पाली) में मंदिर। कुशाल सिंह चंपावत की कुल देवी, इनके 10 सिर से 54 भुजायें है। 1857 की क्रांति में इसकी मूर्ति को अंग्रेजो द्वारा अजमेर लाया गया था।

10. नागणेचिया माता: नागेणा (बाड़मेर) में, निर्माण रावदुहण द्वारा 13वीं शताब्दी में, राठौड़ वंश की कुल देवी, राठौड़ वृक्ष मीन के वृक्ष को न काटता है, न ही उपयोग करता है।

11. ढाढ माता: कोटा में पोलियो की देवी।

12. तणोटिया माता: तनोट (जैसलमेर) सेना की रक्षा करे, पर सैनिकों की आराध्य देवी मानी जाती है।

13. आमजा माता: मंदिर रीछड़ा (उदयपुर) में, भीलों की देवी, प्रतिवर्ष ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी को मेला।

14. बाण माता: कुम्भलगढ़ किले के पास, केलवाड़ा में मंदिर, मेवाड़ शासकों की कुल देवी।

15. महामाया: शिशु रक्षक देवी, मंदिर मावली उदयपुर में गर्भवती स्त्रियों द्वारा पूजा।

16. कालिका माता: मंदिर पद्मिनी महल, चित्तौड़गढ़ दुर्ग, निर्माण मानमौ द्वारा 8वीं शताब्दी में, गोहिल वंश (गहलोतों) की कुल देवी।

17. कुशला माता: मंदिर बदनौर (भीलवाड़ा) में, निर्माण – महाराणा कुम्भा द्वारा, इसी के पास बैराठ माता का मंदिर है। ये दोनों बहनें मानी जाती है तथा चामुण्ड माता का अवतार है।

18. ज्वाला माता: मंदिर जोबनेर (जयपुर में) जेत्रसिंह ने इनके आशीर्वाद से लाल वेग की सेना को हराया था।

19. चामुण्डा देवी: मंदिर अजमेर, निर्माण पृथ्वीराज चैहान द्वारा चैहानों की कुल देवी, चारण भाट चन्दरबरदाई की इष्ट देवी।

20. बडली माता: छीपों के आकोला (चित्तौड़गढ़) बेडच नदी के किनारे, बीमार बच्चों को मंदिर की दो तिबारी से निकाला जाता है।

21. आशापुरा माता: उपनाम – आक्षापुरा, मंदिर – पोकरण (जैसलमेर) बिस्सा जाति की कुल देवी, मनोकामना पूर्व करने वाली देवी, माता के मेहन्दी नहीं लगाई जाती है।

22. स्वांगीया माता: मंदिर गजरूपसागर (जैसलमेर) में, यादव भाटी वंश की कुल देवी, राजकीय प्रतिचिन्ह पालमचिड़ी व स्वांग (मुडाहुआ)।

23. तुलजा भवानी: चित्तौड़ दुर्ग में प्राचीन माता मंदिर, छत्रपति शिवाजी की आराध्य देवी।

24. जल देवी: बावडी (टांेक) में स्थित।

25. छींक माता: जयपुर

26. हिचकी माता: सनवाड़ (उदयपुर)

27. जिलाजी माता: बहरोड़ (अलवर) हिन्दूओं को मुस्लिम बनने से रोकने के लिए माता रूप में प्रसिद्ध।

28. आवरी माता: निकुम्भ (चित्तौड़गढ़) में मन्दिर, लूले लंगड़े लखवाग्रस्त लोगों का ईलाज।

29. भदाणा माता: कोटा में, मूठ की पकड़ में आये व्यक्ति में इलाज के लिए।

30. शीतला माता: मंदिर चाकसू (जयपुर) में शील डूंगरी पर, निर्माण सवाई माधोसिंह द्वारा, उपनाम मातृरक्षा तथा चेचक की देवी। पूजारी कुम्हार, वाहन गंधा। प्रतिवर्ष शीतलाष्टमी पर गर्धभ मेला। सर्वप्रथम चढ़ावा – जयपुर दरबार द्वारा। शीतलाष्टमी – चैत्र शुक्ल अष्ठमी।

31. संकराय माता: मंदिर उदयपुरवाटी (झुन्झूनु) में, खण्डेलवाल जाति की कुल देवी, उपनाम – शाक्मभरी, शंकरा। अकाल पीडि़त जनता की रक्षा के लिए।

32. सच्चिया माता: मंदिर ओसिया (जोधपुर) में। ओसवालों की कुल देवी, निर्माण परमार शासक उपलदेव द्वारा। महिषासुर मदरनी का सात्विक रूप।

33. नारायणी माता: मंदिर अलवर, नाईयों की कुल देवी, मूलणाम करमीती। मंदिर प्रतिहार शैली का बना हुआ बरवा डूंगरी पर स्थित है। पुजारी – मीणा जाति।

34. राणी सती: मंदिर – झून्झूनु, मूल नाम – नारायणी बाई, दादी जी नाम प्रसिद्ध, परिवार में कुल 13 सतियां हुई।

35. आई माता: मंदिर – बिलाड़ा जोधपुर, सिखी कृषक राजपूतों की कुल देवी, मंदिर – दरगाह थान बड़ेर कहलाता है। मंदिर बिना मूर्ति का है जहाँ दीपक की ज्योति से केसर टपकता है जिसका उपयोग इलाज में किया जाता है।

37. घेवर माता: राजसमन्द झील की पाल पर सती हुई|

Choose from these tabs.

You may also like

About author

Rajesh Bhatia

A Writer, Teacher and GK Expert. I am an M.A. & M.Ed. in English Literature and Political Science. I am highly keen and passionate about reading Indian History. Also, I like to mentor students about how to prepare for a competitive examination. Share your concerns with me by comment box. Also, you can ask anything at linkedin.com/in/rajesh-bhatia-7395a015b/.

Read more articles

  Report Error: राजस्थान की देवियाँ

Please Enter Message
Error Reported Successfully